नई दिल्ली, 20 अक्टूबर। विश्व आयोडीन अल्पता दिवस, जिसे वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस के रूप में भी जाना जाता है, प्रतिवर्ष 21 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में आयोडीन की आवश्यक भूमिका के बारे में जागरुकता बढ़ाना और आयोडीन की कमी के परिणामों पर जोर देना है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार आयोडीन की कमी के गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों को समझते हुए केंद्र सरकार ने 1962 में राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम (एनजीसीपी) के माध्यम से इस समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय प्रयास शुरू किए। यह कार्यक्रम आयोडीन की कमी को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, जो मानसिक और शारीरिक मंदता, बौनापन और मृत जन्म जैसी स्थितियों से जुड़ा हुआ था।
मंत्रालय का कहना है कि 1984 में भारत में सभी खाद्य नमक को आयोडीनयुक्त बनाने का एक प्रमुख नीतिगत निर्णय लिया गया था। 1992 तक, देश ने आयोडीन युक्त नमक को पूरी तरह से अपनाने का लक्ष्य रखा। आज, भारत सालाना 65 लाख मीट्रिक टन आयोडीन युक्त नमक का उत्पादन करता है, जो इसकी आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। यह चल रहा राष्ट्रीय प्रयास आयोडीन की कमी को दूर करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
आयोडीन मिनरल है और थायरॉइड हार्मोन, थायरोक्सिन (टी4) और ट्राईआयोडोथायोनिन (टी3) का एक आवश्यक घटक है। यह हार्मोन से चयापचय को नियंत्रित करता है और भ्रूण तथा शिशु के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। आयोडीन की कमी से विकास और वृद्धि पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं और यह दुनिया में रोके जा सकने वाली बौद्धिक अक्षमता का सबसे आम कारण है। आयोडीन की कमी से होने वाले विकार अपर्याप्त आयोडीन के कारण अपर्याप्त थायराइड हार्मोन उत्पादन के परिणामस्वरूप होते हैं। गर्भावस्था और प्रारंभिक शैशवावस्था के दौरान, आयोडीन की कमी से अपरिवर्तनीय प्रभाव हो सकते हैं।
विश्व आयोडीन अल्पता दिवस एनआईडीडीसीपी जैसी राष्ट्रीय पहलों और डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ द्वारा किए गए वैश्विक प्रयासों के माध्यम से आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों को रोकने में हुई प्रगति की याद दिलाता है। निरंतर निगरानी से निरंतर सफलता सुनिश्चित होगी, जिससे अंततः स्वस्थ आबादी और दुनियाभर में जीवन की बेहतर गुणवत्ता में योगदान मिलेगा।