स्ट्रासबर्ग (फ्रांस), 10 जून। यूरोपीय यूनियन के संसदीय चुनाव में हार की आशंका की वजह से फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने संसद भंग कर मध्यावधि चुनाव का आह्वान कर दिया है। बेल्जियम की सत्तारूढ़ पार्टी की इस चुनाव में हार के बाद प्रधानमंत्री एलेक्जेंडर डीक्रू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

यूरोपीय यूनियन के संसदीय चुनाव छह से नौ जून के बीच हुए। इस चुनाव में लगभग 40 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया। चुनाव की शुरुआत छह जून को नीदरलैंड में मतदान के साथ शुरू हुई। इस दौरान फ्रांस, इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, इस्टोनिया, लिथुआनिया और स्वीडन जैसे तमाम यूरोपीयन देशों में भारी मतदान हुआ।

यूरोपीय संसद दरअसल यूरोपीय लोगों और यूरोपीय संघ की संस्थाओं के बीच संपर्क स्थापित करने की सीधी कड़ी है। यह दुनिया की अकेली सीधी चुनी हुई अंतरराष्ट्रीय सभा है। इसमें संसद के सदस्य यूरोपीय संघ के नागरिकों के हितों की बात करते हैं। मेंबर ऑफ यूरोपियन यूनियन (एमईपी) सदस्य देशों की सरकारों के साथ मिलकर नए-नए कानून बनाते हैं। वे अंतरराष्ट्रीय मसलों पर फैसला लेते हैं। यह सदस्य क्लाइमेट चेंज और रिफ्यूजी पॉलिसी का बजट तय करते हैं।

यह चुनाव पोस्टल बैलेट से कराए जाते हैं। ईयू के लिए हर देश से चुने जाने वाले सदस्यों की संख्या उस देश की आबादी पर निर्भर करती है। 2019 के यूरोपीय संसद के चुनाव में 751 प्रतिनिधियों को चुना गया था। अधिकतर सदस्य देशों में मतदान की तय उम्र 18 साल है। लेकिन 2022 में बेल्जियम में इसे घटाकर 16 साल कर दिया गया था। जर्मनी, माल्टा और ऑस्ट्रिया में भी 16 साल तक की उम्र के लोग वोट कर सकते हैं। ग्रीस में मतदान की तय उम्र 17 साल है। अधिकतर देशों में चुनाव लड़ने की उम्र 18 साल, जबकि इटली और ग्रीस में 25 साल है।

यह चुनाव हर पांच साल में चार दिन की अवधि के दौरान कराए जाते हैं। इसकी वजह है कि अलग-अलग यूरोपीय यूनियन के देश अपने-अपने तौर-तरीकों से मतदान का आयोजन करते हैं। कई देशों में चुनाव एक ही दिन में पूरा करा दिया जाता है लेकिन कई देशों में इसमें एक से अधिक दिन का समय लगता है।

द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय संसद के चुनाव में मतदाताओं ने बड़े पैमाने पर मध्यमार्गियों का समर्थन किया है। फ्रांस और जर्मनी में दूरदराज के क्षेत्रों में सत्तारूढ़ पार्टियों को झटका लगा है। रविवार देररात सार्वजनिक किए गए आंशिक नतीजों से साफ हुआ है कि मध्यमार्गी राजनीतिक समूह को कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है।