काठमांडू, 11 मई। नेपाल की तीन प्रदेश सरकारों के भविष्य का फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच करेगी। कोर्ट की अलग अलग बेंच में सुनवाई के बाद इन सभी मसलों को संवैधानिक बेंच में भेजने का फैसला किया गया है।

कोशी प्रदेश में दो मुख्यमंत्रियों में से किसे आधिकारिकता प्रदान करने, गण्डकी प्रदेश में बहुमत साबित करने के दौरान स्पीकर द्वारा सरकार के पक्ष में वोट कर बहुमत की संख्या पहुंचाए जाने और सुदूर पश्चिम प्रदेश में मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका को लेकर अब संवैधानिक बेंच फैसला करेगी। इन तीनों मुकदमों की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने बताया कि चूंकि ये सभी मसला संविधान की व्याख्या से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसकी सुनवाई संवैधानिक बेंच में ही की जाएगी।

कोशी प्रदेश में राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री को बिना हटाए नए मुख्यमंत्री की नियुक्ति के खिलाफ मुकदमे पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश हरि फूयाल ने कहा कि संविधान की जिन धाराओं का प्रयोग कर प्रदेश प्रमुख यानि राज्यपाल ने नए मुख्यमंत्री का शपथग्रहण करवाया है और जिन धाराओं का प्रयोग कर वर्तमान मुख्यमंत्री अपना दावा पेश कर रहे हैं, उन दोनों धाराओं की व्याख्या संवैधानिक बेंच से ही हो सकती है। चूंकि दोनों पक्ष अलग अलग धाराओं में अपनी दावेदारी कर रहे हैं और उन धाराओं के तहत दोनों ही सही है लेकिन संविधान बनाते समय इस तरह की परिस्थिति आने की कल्पना नहीं की गई थी। अब संविधान की दोनों ही धारा एक दूसरे से बाधित कर रही हैं। ऐसे में इसकी व्याख्या संवैधानिक बेंच द्वारा की जाएगी।

गण्डकी प्रदेश में बहुमत के दौरान सदन के स्पीकर द्वारा ही सरकार के पक्ष में मतदान कर बहुमत पहुंचाने के खिलाफ नेपाली कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया है। इसमें स्पीकर द्वारा मतदान किए जाने को अमान्य ठहराने की मांग की गई है। चूंकि इसी तरह के प्रकरण में पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने कोशी प्रदेश में दो सरकारों को इसलिए बर्खास्त कर दिया था, क्योंकि वहां भी बहुमत पहुंचाने के लिए स्पीकर के मत का इस्तेमाल किया गया था। कांग्रेस पार्टी की मांग है कि गण्डकी प्रदेश में जिस तरह से सरकार बनाने के लिए किए गए दावे में पहले स्पीकर पद का दुरुपयोग करते हुए उनका भी हस्ताक्षर दिखाया गया और बाद में बहुमत साबित करने के दौरान स्पीकर का भी एक वोट लेकर बहुमत साबित किया गया, ये दोनों ही गलत हैं और सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के खिलाफ है। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सपना प्रधान मल्ल ने कहा कि उस समय कोर्ट ने किन परिस्थितियों में स्पीकर को मत देने से वंचित किया था, यह नहीं मालूम लेकिन जिस तरह से सदन में पक्ष विपक्ष का वोट बराबर होने पर स्पीकर का वोट मान्य होगा कि नहीं, इसको लेकर संविधान में स्पष्ट व्याख्या नहीं है। इसलिए इस मामले को संवैधानिक बेंच में भेजा जाए ताकि संविधान में जिन प्रावधानों का उल्लेख नहीं है, उसकी व्याख्या हो सके।

इसी तरह सुदूर पश्चिम प्रदेश में मुख्यमंत्री की नियुक्ति के दौरान प्रदेश के राज्यपाल द्वारा सरकार बनाने का आह्वान किए जाने के बाद जिस व्यक्ति ने पहले दावा किया था, उसको मान्यता नहीं देते हुए फिर से सरकार बनाने का आह्वान कर सत्तारूढ़ गठबन्धन के पक्ष में काम करने का आरोप लगाते हुए इस प्रक्रिया को खारिज कर पहले दावा करने वाले व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करने की मांग की गई है। साथ ही अदालत में यह भी कहा गया है कि एक ही पार्टी के संसदीय दल के नेता का निर्णय माना जाए या पार्टी के अध्यक्ष का। इसी तरह वहां पर इस बात को लेकर भी मुकदमा चल रहा है कि पार्टी व्हिप जारी करने का अधिकार विधायक दल के प्रमुख सचेतक को है या पार्टी अध्यक्ष को? इस पर भी सुनवाई करते हुए न्यायाधीश आनन्द मोहन भट्टराई ने कहा कि प्रदेश प्रमुख के अधिकार को लेकर संविधान की व्याख्या की आवश्यकता है, इसलिए इस मामले को भी संवैधानिक बेंच में भेजा जा रहा है।