संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत आसन तक लेकर पहुंचे
दमोह, 16 अप्रैल। मध्य प्रदेश के दमोह जिले में स्थित कुंडलपुर तीर्थ क्षेत्र में मंगलवार को समाधिस्थ आचार्य विद्यासागर महाराज के उत्तराधिकारी के तौर पर मुनि समय सागर महाराज ने विधि-विधान से आचार्य पद स्वीकार किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत समय सागर महाराज को आसन तक लेकर पहुंचे। इसके बाद आगे की प्रक्रिया शुरू हुई। इस पल के लाखों लोग साक्षी बने। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी इस दौरान मौजूद रहे।
कुंडलपुर में आचार्य पद पदारोहण का कार्यक्रम मंगलवार को दोपहर एक बजे शुरू हुआ। मुनि संघ उन्हें अपने साथ लेकर पहुंचा। सोने-चांदी के कलश से उनके चरण धुलवाए गए। कार्यक्रम का संचालन नियम सागर महाराज, प्रणाम सागर महाराज और अन्य मुनियों ने किया। समय सागर महाराज को सबसे ऊंचे आसन पर बिठाया गया। चौक पूरने के बाद आचार्यश्री का आसन रखा गया। इसके बाद मुनि संघ ने समय सागर महाराज से पद स्वीकार करने का निवेदन किया, जिसे उन्होंने स्वीकार किया। आचार्य पद ग्रहण करने की विधि शुरू हुई तो नियम सागर महाराज ने सभी से आचार्य समय सागर महाराज की वंदना करने को कहा। मांगलिक क्रिया में सबसे पहले कलश स्थापना की गई। इसके बाद आचार्य पद ग्रहण करने की विधि शुरू हुई। एक के बाद एक पांच स्वर्ण कलश स्थापित किए गए।
समय सागर महाराज के आसन पर विराजमान होने और आचार्य पद स्वीकार करने के बाद सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, कैबिनेट मंत्री प्रहलाद पटेल, दमोह विधायक जयंत मलैया सहित अन्य लोगों ने आचार्यश्री को श्रीफल भेंट किया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी निर्धारित समय से करीब एक घंटे बाद कुंडलपुर पहुंचे। उन्होंने आचार्य समय सागर महाराज के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लिया। इस नजारे को देखने के लिए पूरे देशभर से लाखों लोग कुंडलपुर पहुंचे थे।
कार्यक्रम में शामिल होने आए सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कुंडलपुर पहुंच कर सबसे पहले बड़े बाबा के दर्शन किए। इसके बाद उन्होंने आचार्य समय सागर महाराज सहित अन्य मुनियों का आशीर्वाद लिया। मंच पर पहुंच कर कार्यक्रम की पत्रिका का विमोचन किया। इसके बाद सरसंघचालक ने आचार्यश्री से पहली मुलाकात के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि आचार्य विद्यासागर महाराज से मेरा परिचय पहली बार जबलपुर के नर्मदा घाट पर हुआ था। पहली बार उनसे मिलने पहुंचा था। अध्यात्म का मुझे बहुत ज्यादा ज्ञान तो नहीं था। इस वजह से आचार्यश्री के सामने जाने से पहले मैं सोच रहा था कि क्या होगा? ये डर मेरे मन में था लेकिन वहां जो उनका स्नेह मिला, उससे भय भी दूर हो गया और संकोच भी।