भाजपा योग्य उम्मीदवार की तलाश में, नाम तय होना बाकी
मेहसाणा, 20 मार्च। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह जिले की लोकसभा सीट मेहसाणा शुरुआत से भाजपा का गढ़ रही है। पाटीदार बाहुल्य इस सीट पर दूध (डेयरी) की राजनीति से लेकर किसान और ओबीसी कार्ड छाया रहता है। इसे गुजरात की राजनीति का लेबोरेटरी भी कहा जाता है, इस वजह से इस सीट के परिणाम पर पूरे राज्य समेत देश की नजर रहती है। वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को देश भर में सिर्फ दो सीट मिली थी, तो एक सीट मेहसाणा से आई थी।
आजादी के बाद से अब तक मेहसाणा सीट पर केसरिया का बोलबाला रहा है। आजादी के बाद से अब तक इस सीट पर 18 बार चुनाव हुए हैं, इसमें 9 बार इस सीट पर भाजपा का कब्जा हुआ है, 6 बार कांग्रेस जीती है। वर्ष 1984 से 1998 तक भाजपा के एके पटेल और वर्ष 2009 से 2014 तक भाजपा की जयश्रीबेन पटेल विजयी रहीं। वर्ष 2019 में भाजपा की शारदाबेन पटेल ने कांग्रेस उम्मीदवार को 2.81 लाख मतों से हराया था। भाजपा उम्मीदवार को कुल 6.59 लाख और कांग्रेस को 3.78 लाख मत मिले थे। इसके अलावा इस सीट पर हमेशा परिवर्तन होता आया है। भाजपा हो या कांग्रेस, निर्दलीय या अन्य दल, सभी के उम्मीदवार एक बार जीतने के बाद दूसरी बार नहीं जीत सके हैं। यह सीट हमेशा परिर्वतन को महत्व देती आई है।
भाजपा के लिए ऐतिहासिक है मेहसाणा सीट
29 दिसंबर, 1984 को जब लोकसभा चुनाव का परिणाम घोषित हुआ, तो पहली बार चुनाव मैदान में उतरी भाजपा नेताओं की दिग्गजों की टीम को चुनाव में बुरी तरह परास्त होना पड़ा। राष्ट्रीय अध्यक्ष समेत पार्टी के बड़े नेता चुनाव हार गए। इस समय भाजपा को देश भर में सिर्फ 2 सीट मिली थी, एक गुजरात में मेहसाणा और दूसरी सीट आंध्र प्रदेश की हनामकोंडा। 1984 के चुनाव में मेहसाणा सीट पर भाजपा के अमृतलाल कालीदास (एके) पटेल ने चुनाव जीतकर सभी को चौंका दिया था। उन्होंने कांग्रेस के सागरभाई रायका को 43 हजार मतों से हराया था। हाल मेहसाणा समेत गुजरात की सभी 26 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने गठबंधन किया है जबकि गत विधानसभा चुनाव में दोनों विपक्षी पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। इस वजह से मेहसाणा सीट पर राजनीतिक समीकरण बदल गया है। मेहसाणा सीट के लिए भाजपा ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। इस सीट पर फिलहाल पेंच फंसा हुआ है। गुजरात के पूर्व उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने उम्मीदवारी करने के बाद अपना नाम वापस ले लिया है।
पाटीदार आंदोलन का पड़ा था गहरा असर
वर्ष 2015 में पाटीदार आरक्षण आंदोलन का मेहसाणा में गहरा असर हुआ था। तब पाटीदार समाज आरक्षण की मांग को लेकर राज्य भर में आंदोलित था, जिस दौरान पुलिस की कार्रवाई से पाटीदार भाजपा से नाराज हो गए थे। पाटीदार आंदोलन के कारण खासतौर से युवावर्ग भाजपा से नाराज था, जिसका असर स्थानीय निकायों के चुनाव में देखने को मिला था। इसमें उसे जिला पंचायत समेत 7 तहसील पंचायत, 2 नगरपालिका में हार का सामना करना पड़ा था। बाद में वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विजापुर और कडी सीट कांग्रेस से छिन ली थी। लेकिन, बहुचराजी, ऊंझा और माणसा सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2021 में स्थानीय स्वराज के चुनावों में मेहसाणा जिला पंचायत और 10 में से 9 तहसील पंचायत में भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया।
अभी तक का राजनीतिक सफर (विजयी उम्मीदवार)
1951-शांतिलाल पारेख (कांग्रेस), 1957-पुरुषोत्तमदास पटेल (निर्दलीय), 1962-मानसिंह पटेल (कांग्रेस), 1967-रामचंद्र अमिन (स्वतंत्र पार्टी), 1971-नटवरलाल ए पटेल (कांग्रेस आर्ग्रेनाइजेशन), 1977-मणिबेन पटेल (जनता पार्टी), 1980- मोतीभाई चौधरी (कांग्रेस), 1984- ए के पटेल (भाजपा), 1989- ए के पटेल (भाजपा), 1991- ए के पटेल (भाजपा), 1996- ए के पटेल (भाजपा), 1998- ए के पटेल (भाजपा), 1999-आत्माराम पटेल (कांग्रेस), 2002-पूंजाजी ठाकोर (भाजपा), 2004-जीवाभाई पटेल (कांग्रेस), 2009-जयश्रीबेन पटेल (भाजपा), 2014-जयश्रीबेन पटेल (भाजपा), 2019-शारदाबेन पटेल (भाजपा)