नई दिल्ली, 28 फरवरी। दारुल उलूम देवबंद द्वारा गजवा-ए-हिंद (भारत पर इस्लामी कब्जा)’ करने के संबंध में दिए गए फतवा पर अभी विवाद थमा भी नहीं था कि इसने एक और विवाद पैदा करने वाला फतवा जारी कर दिया है। इस बार अपने फतवे में इसने साफ कहा है कि ‘सांप्रदायिक दंगों में मारे गए लोगों को भी इस्लामी लोकाचार के अनुसार शहीद का दर्जा मिलेगा ।’ उक्त फतवा सोमवार को जारी किया गया है, जिसमें दंगों में या इस्लाम को लेकर होने वाले किसी भी संघर्ष में यदि कोई मारा जाएगा तो उसे शहीद घोषित किया जाएगा।

आतंकवादियों के मारे जाने पर अतिवादी इन्हें देते हैं शहीद का दर्जा

उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के मारे जाने पर वहां के कई अलगाववादी और आतंकी संगठन उन्हें ‘शहीद’ करार देते हैं। पर किसी मजहबी या इस्लामी धार्मिक उलेमा या संगठन द्वारा ऐसे मामलों में किसी को भी खुलकर समर्थन नहीं दिया गया था और न ही किसी ने अभी तक ‘दारुल उलूम देवबंद’ की तरह सामने आकर ही लिखित में कोई फतवा जारी किया था । एक शिक्षा संस्थान के नाम पर स्थापित किए गए ”दारुल उलूम देवबंद” ने कर दिखाया है। इससे साफ हो गया है कि उसे किसी भी शासन-प्रशासन का कोई भय नहीं है । इस संगठन से जुड़े लोग प्रारंभ से ही भारत में शरियत कानून की भी वकालत करते हैं और इसके भारत पर लागू करने पर जोर देते हैं ।

दारुल उलूम देवबंद पर कानूनी कार्रवाई किए जाने की हो रही मांग

दारुल उलूम देवबंद का यह ताजा फतवा देश में अराजकता और हिंसा को बढ़ाने देने वाला है। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीआर) ने इसे गंभीरता से लेते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी है तो दूसरी ओर कई प्रबुद्ध लोगों का मत भी सामने आया है, जिसमें सभी ने एक स्वर में यह कहा है कि जल्द से जल्द इस संस्थान पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। योगी आदित्य नाथ की उत्तर प्रदेश सरकार को धार्मिक, वैचारिक आवरण देकर दंगों को बढ़ावा देने के लिए देवबंद के नेतृत्व की जांच करनी चाहिए!

इस संबंध में एनसीपीआर अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो का कहना है, ”दारुल उलूम देवबंद बच्चों के लिए एक मदरसा है, इस संस्था द्वारा किसी भी रूप में हिंसा को महिमा मण्डित किए जाने से बच्चों पर ग़लत असर होगा। दारुल उलूम द्वारा सांप्रदायिक दंगों में मरने वालों को शहीद निरूपित करने का फ़तवा जारी करना निश्चित ही एक एजेंडे के तहत किया गया काम है। हम उत्तर प्रदेश सरकार को कार्यवाही के लिए लिख रहे हैं।’’

गजवा-ए-हिन्द का विवाद खड़ा कर चुका है दारुल उलूम देवबंद

दारुल उलूम देवबंद ने इससे पहले जो विवाद खड़ा किया था, इसमें कहा गया है कि गजवा-ए-हिन्द में मरने वाले महान बलिदानी होंगे। मुख्तार कंपनी द्वारा प्रकाशित सुन्न अल नसा नाम की किताब के गजवा-ए-हिन्द को लेकर लिखे गए एक पूरे चैप्टर का हवाला देते हुए यहां हजरत अबू हुरैरा (पैगंबर मोहम्मद साहब के करीबी रहे) से एक हदीस सुनाई गई है। इस हदीस के बारे में बताते हुए कहा गया है कि अल्लाह के पैगंबर ने ‘भारत पर हमला’ करने का वादा किया था। इसमें उन्होंने गजवा ए हिंद पर कहा कि मैं इसमें लडूंगा और अपनी सभी धन संपदा को इसमें कुर्बान कर दूंगा। मर गया तो महान बलिदानी बनूंगा। जिंदा रहा तो गाजी कहलाऊंगा। हजरत मोहम्मद साहब ने इस संबंध में भविष्यवाणी भी की थी। फतवे में किताब को प्रिंट करने वाली कंपनी का भी नाम दिया गया है। देवबंद की मुख्तार कंपनी ने इस किताब को प्रिंट किया है। इस फतवे को एनसीपीआर से गंभीरता से लिया और इसे किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 का उल्लंघन करार दिया।

एनसीपीआर ने इस मामले को भी लिया था अपने संज्ञान में

गजवा-ए-हिन्द मामले में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीआर) अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो का वक्तव्य भी सामने आ चुका है। मामले में कानूनगो ने स्पष्ट तौर पर कहा है, ‘दारुल उलूम देवबंद मदरसे में बच्चों को भारत विरोधी शिक्षाएं दे रहा है, जिससे इस्लामी कट्टरपंथ को बढ़ावा मिल रहा है। आयोग ने इसे किशोर न्याय अधिनियम की धाराओं में तो उल्लंघन करना माना। साथ में सीपीसीआर अधिनियम की धारा 13 (1) टीजे के तहत मामले को स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा कि इस तरह के फतवे की सामग्री से देश के खिलाफ नफरत फैल सकती है।

आयोग ने जिला प्रशासन से दारुल उलूम की बेवसाइट की जांच करने का अनुरोध भी किया और कहा था कि इसके जरिए देश की जनता को गुमराह किया गया है, इसलिए जांच करके इसे तुरंत ब्लॉक किया जाए। उन्होंने जिला प्रशासन को एक्शन नहीं लेने पर जिम्मेदार मानने की भी चेतावनी दी थी। अब इस पूरे विवाद पर दारुल उलूम देवबंद की तरफ से प्रतिक्रिया का इंतजार है। दूसरी ओर एनसीपीसीआर के कहने के बाद भी फिलहाल इसकी वेबसाइट को अभी बंद नहीं किया गया है और यह ऑनलाइन फतवे पर फतवे जारी कर रही है। इसी में अब आया यह ताजा फतवा फिर से विवाद पैदा कर रहा है।

दारुल उलूम देवबंद का दावा, देश की आजादी में निभाई अहम भूमिका, किंतु सामने हकीकत अलग

दारुल उलूम देवबंद दावा करता रहा है कि उसने देश की आजादी में मुख्य भूमिका निभाई है। मदरसों के स्थापना का मकसद ही देश की आजादी था। मदरसों के लोगों ने ही देश को आजाद कराया लेकिन दुख की बात है कि आज मदरसों के ऊपर ही प्रश्नचिन्ह लगाए जा रहे हैं और मदरसे वालों को आतंकवाद से जोड़ने के निंदनीय प्रयास किए जा रहे हैं। इनके इस पक्ष के इतर दूसरा बड़ा सच जो बार-बार सामने आ रहा है, वह इनकी बताई जा रही हकीकत से अलग है। यह आज साफ बता रही है कि अनेक आतंकवादी इस संगठन से ही दीनी तालीम लेकर निकले हैं और उनके पूरे जीवन पर इस संगठन का प्रभाव साफ झलकता है। यहां से कई बार संदिग्ध आतंकी, बांग्लादेशी, रोंहिग्या भी पकड़े गए हैं।

लखनऊ एटीएस ने कोलकाता जेल से जमात उल मुजाहिद्दीन बांग्लादेश (जेएमबी) से जुड़े आतंकी मुफक्किर उर्फ हमीदुल्ला को रिमांड पर भी लिया था। जांच में सामने आया कि सहारनपुर में कई स्लीपर सेल बनाए गए थे। जेएमबी से जुड़े आठ संदिग्ध आतंकियों में चार सहारनपुर के रहने वाले थे, जिनमें कामिल नामक युवक देवबंद रह रहा था। देवबंद से जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी शाहनवाज तेली निवासी कुलगाम (जम्मू-कश्मीर) और आकिब अहमद मलिक निवासी पुलवामा की गिरफ्तारी हुई। इसी तरह से देवबंद से पांच बांग्लादेशियों को पकड़ा, जो यहां लंबे समय यहां रह रहे थे। देबवंद से संदिग्ध इनामुल को एटीएस ने गिरफ्तार किया। आरोपित के तार आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े मिले थे। आगे इसमें केंद्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) व यूपी एटीएस ने देवबंद में एक मदरसे छात्र को पकड़ा था, जो देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त था।

स्वतंत्रता दिवस से पूर्व चलाए गए विशेष अभियान में एनआईए ने देवबंद से रोहिंग्या छात्र को पकड़ा था। देवबंद में किराए के मकान में रह रहे दो संदिग्धों को एटीएस ने पकड़ा था, जिनके देश विरोधी गतिविधियों लिप्त होने के सबूत मिले थे। उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने 10 संदिग्ध आतंकवादियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। उनकी पहचान आदिल उर रहमान अशरफी, अबू हुरैरा गाजी, शेख नाजीबुल हक, मोहम्मद राशिद, कफिलुद्दीन, अजीम के रूप में हुई। अब्दुल अव्वल, अबू सालेह, अब्दुल गफ्फार और अब्दुल्ला गाजी पर भारत में मस्जिद बनाने के लिए अवैध रूप से विदेशों से पैसा मांगने, रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिकों को भारत में बसाने और देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने का आरोप है।

जब से दारुल उलूम देवबंद का अस्तित्व सामने आया, तभी से आतंकवादी यहां से निकल रहे

इस पूरे मामले में भी खास बात यह है कि यूपी एटीएस द्वारा गिरफ्तार किए गए ज्यादातर साजिशकर्ता देवबंद के दारुल उलूम से जुड़े पाए गए। इसी तरह से जब से ये संगठन अपने अस्तित्व में आया है, तब से अब तक इसके निकले कई विद्यार्थी आतंक के रास्ते पर चलते हुए पाए गए हैं, जिनका एक ही स्वप्न अब तक बार-बार सामने आता रहा है गजवा-ए-हिन्द । देवबंद से ही एक मदरसे के छात्र को एक और ‘पुलवामा जैसे आतंकी हमले’ की धमकी देने वाली सोशल मीडिया पोस्ट पर हिरासत में लिया गया। जिस आरोपी को पकड़ लिया गया है और उसकी पहचान मोहम्मद तल्हा मजार के रूप में हुई, उसने अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा, “इंशाअल्लाह, जल्द ही दूसरा पुलवामा होगा।” इस तरह कई अन्य आतंकवादी भी यहां से समय-समय पर पकड़े गए हैं।

भारत से जिहाद खत्म करने के लिए करना होगा ये काम

यहां इस पूरे प्रकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय का कहना है कि देश से यदि ‘जिहाद खत्म करना है तो पुलिस रिफार्म-ज्यूडिशियल रिफार्म करिए, विशेष स्कूल विशेष कानून विशेष दर्जा बंद करिए, समान शिक्षा समान नागरिक संहिता समान जनसंख्या संहिता समान धर्मस्थल संहिता लागू करिए, घुसपैठ घूसखोरी कालाधान हवाला धर्मांतरण और विदेशी चंदा नियंत्रण के लिए कठोर कानून बनाइए।’

शहीद मामले को लेकर आए नए फतवे पर है एफआईआर दर्ज होने का इंतजार

मामले को अन्य दूसरे अधिवक्ता एवं सहकारिता क्षेत्र में कार्य करनेवाले धर्मवीर सिंह दाहिया का मानना है कि ‘देश में कानून व्यवस्था सही रखना है तो आतंकवाद पर लगाम कसने की जरूरत है। जितने भी ऐसे संगठन हैं जो बिना सरकार की इजाजत से चल रहे हैं, उनको बंद करना वर्तमान की जरूरत है। देश में एक जैसी शिक्षा दी जाय और उसे पारदर्शी तरीके से सभी के समक्ष रखा जाना चाहिए। यह शिक्षा ऐसी हो जिसमें राष्ट्र सर्वोपरि की भावना जागृत हो सके। तभी जाकर देश भर में फैल रही कलुषता के वातावरण में कमी आएगी। नहीं तो वर्तमान में दारुल उलूम देवबंद की यह शिक्षा भविष्य के आगे बढ़ते भारत के लिए खतरनाक साबित होगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।’ फिलहाल इस्लाम के लिए लड़ते हुए मरनेवाले को शहीद का दर्जा किए जाने पर आए फतवे पर एफआईआर दर्ज होने का इंतजार है।