प्रवासी साहित्य विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आय़ोजन

कोलकाता, 22 फरवरी। देश के बहुचर्चिच अनुवादक तथा पेन इंडिया लेखक डा. संतोष एलेक्स ने कहा कि प्रवासी साहित्य एक नवीन अवधारण है। हिन्दी साहित्य का प्रचार प्रसार प्रवासी साहित्यकारों ने किया है। डा. एलेक्स ने शिक्षा, समाज व साहित्य को समर्पित संस्थान समर्पण ट्रस्ट, हिंदी विश्वविद्यालय तथा बाबा साहेब अंबेडकर शिक्षण विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित प्रवासी साहित्यः विविध आयाम व विविध परिप्रेक्ष्य विषक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में उक्त बातें कही।

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर इजेडसीसी साल्टलेक में आयोजित इस सेमिनार में उन्होंने कहा कि प्रवासी कथाकारों ने स्त्री के हर रूप को शब्दों के माध्यम से उकेरा है। प्रवासी साहित्यकारों की रचनाओं का अनुवाद जरूरी है।

हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. विजय कुमार भारती ने कहा कि प्रवास में निवास मजबूरी होती है। प्रवास एक दर्द है। जैसे-जैसे प्रवास का दर्द बढ़ता है वैसे-वैसे उसकी राजनीतिक सांस्कृतिक चुनौतिया बढ़ती है। प्रवासी साहित्य लिंग भेद, भुमंडलीकरण के सवाल पैदा करता है।

प्रवासी लेखिका तथा नाटिंघम स्थित एशिया आर्टिस कौंसिल की पूर्व अध्यक्ष जय वर्मा ने कहा कि विश्व के कोने-कोने में भारतीय मूल के लोग बसते हैं। अपनी सभयता को सोचते हुए जो विश्व के कोने कोने से जो साहित्य रच रहे हैं वो प्रवासी साहित्य है। प्रवासी साहित्य दूरी कम करने का काम करता है।

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की संपादक डा. अमिता दुबे  ने कहा कि प्रवासी साहित्य विश्व के माथे की बिंदी है। आज का समय इंटरनेट का समय है। हमने इंटरनेट के माध्यम विश्व की दूरियों को नाप लिया है।

समर्पण ट्रस्ट के ट्रस्टी प्रदीप ढेडिया ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के इस पुनीत मौके पर प्रवासी साहित्य विषयक सेमिनार का आय़ोजन कर ट्रस्ट अपनी नैतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहा है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार विश्वम्भर नेवर ने कहा कि कलकत्ता हिंदी की जन्मस्थली नहीं है लेकिन पल्लिवत पुष्पित यही हुई है। भाषा एक ऐसी चीज है जिसे इंसान ने बनाया है। भारतीय भाषाओं ने विश्व में जो स्थान बनाया है, वो प्रशंसनीय है। यह आयोजन बहुत महत्वपूर्ण है। इसका संदेश दुनिया में जाना चाहिए। हमें यह जानना चाहिए कि प्रवासी किन चीजों पर लिख रहे हैं। इ

सेमिनार का सफल संचालन डा. गोस्वामी जे.के. भारती ने किया। पूरे कार्यक्रम के संयोजक प्रो. प्रतीक सिंह ने कहा कि प्रवासी साहित्य पर साकारात्म कार्य हो रहे हैं। इनमें और काम किये जाने की जरूरत है। आयोजक संस्थाएं भविष्य में और बेहतर आय़ोजन करेंगी।

सेमिनार में उद्योगपित व समाजसेवी भानीराम सुरेका, पूर्ति समूह के चेयरमैन महेश अग्रवाल, ट्रस्ट के सभापति श्याम लाल अग्रावल, ट्रस्ट के जनसंपर्क सचिव अभ्युदय दुग्गड़, बसंत सेठिया समेत अन्य गणमान्य जन उपस्थित थे।