सात दिवसीय व्यावहारिक अनुवाद कार्यशाला का शुभारंभ
कोलकाता, 16 फरवरी। जीवन हमारा अनुवाद से ही शुरू होता है। अनुवाद हमारी भाषिक व सामाजिक संस्कृति का द्योतक है। अनुवाद चयन की एक कला है। अनुवाद के चयन में विवेक महत्वपूर्ण होता है। यह कहना है पश्चिम बंगाल के हिंदी विश्वविद्यालय, हावड़ा के कुलपति प्रो. डा. विजय कुमार भारती का।
प्रो. भारती समर्पण ट्रस्ट, बाबा साहेब अंबेडकर शिक्षण विश्वविद्यालय तथा हिंदी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय व्यावहारिक अनुवाद कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने समर्पण ट्रस्ट की सराहना करते हुए कहा कि समर्पण का अनुवाद के प्रति सेवा भाव का जो समर्पण है, वह अनुकरणीय है।
बाबा साहेब डा. भीम राव अंबेडकर शिक्षण विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर डा. सोमा बंद्योपाध्याय ने कहा कि अनुवाद केवल दो भाषाओं का मेल नहीं है पूरे विश्व में यह सेतु बंधन का काम करता है। पहले अनुवाद को दोयम दर्जे का पेशा माना जाता था लेकिन बदलते परिवेश में अनुवादकों की भूमिका और जरूरतें दोनों में बदलाव आया है।
उन्होंने कहा कि पहले माना जाता था कि जो अच्छे आलोचक नहीं बन सकते, वो अनुवादक बन जाते हैं। अनुवाद के विविध प्रकार है परंतु साहित्यिक अनुवाद करते वक्त उसके भाव व मर्म को समझे बगैर बेहतर अनुवाद नहीं किया जा सकता।
कार्यक्रम की शुरूआत बाबा साहेब अंबेडकर के चित्र पर पुष्प अर्पण, दीप प्रज्वलन तथा हिंदी विवि की छात्राओं द्वारा सरस्तवती वंदना से हुई। साहित्य अकादमी, कोलकाता के क्षेत्रीय सचिव डा. देवेंद्र कुमार देवेश ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि अनुवाद के क्षेत्र में बंगाल की धरती का बहुत बड़ा योगदान है। परंतु बांग्ला भाषा व साहित्य के ऐसे भी साहित्यकार है, जो अंग्रेजी समेत अन्य भाषा के साहित्य को तरजीह देते हैं, परंतु हिंदी साहित्य से दूरी बनाये रहते हैं। सुनील गंगोपाध्याय समेत अन्य लोग इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है।
वरिष्ठ कवि तथा हिंदी अकादमी के सदस्य रवेल पुष्प ने कहा कि एक भाषा का अनुवाद साहित्य व संस्कृति का आचार विचार है। यह अनुवाद की ही देन है कि गीतांजलि के लिए भारत को प्रथम नोबल पुरस्कार मिला।
समर्पण ट्रस्ट के अध्यक्ष तथा उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कर रहे दिनेश बजाज ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि यह अनुवाद कार्यशाला आपको जीवन जीने की वृति का मार्ग प्रशस्त करेगी। आपको किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा। उन्होंने आगामी दिनों में वृहत्तर बड़ाबाजार के विभिन्न स्कूलों में अनुवाद प्रतियोगिता तथा हिंदी पुस्तक मेला आयोजित करने का सुझाव दिया।
कार्यक्रम का संचालन प्रो. जे.के. भारती ने किया। उद्घाटन समारोह में समर्पण ट्रस्ट के जनसंपर्क सचिव अभ्युदय दुग्गड़, बिनय कुमार भरतिया, शिक्षण विवि के डेपुटी रजिस्ट्रार स्वपन कुमार राय, प्रो. अमृता पासी, प्रो. दिव्या प्रसाद, प्रो. मधुमिता ओझा, कृष्णानंद भारती, दिलीप प्रसाद समेत सैकड़ों प्रशिक्षु उपस्थित रहे।
उद्घाटन समारोह को सफल बनाने में प्रो. प्रतीक सिंह तथा मंटू दास की महत्वपूर्ण भूमिका रही। धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विवि के प्रोफेसर अभिजीत सिंह ने किया।