ओंकार समाचार

उदयपुर 16 जनवरी। बैंगलोर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विकास में डेढ़ करोड़ वृक्ष लगा कर ” जंगल के भीतर टर्मिनल” बनाने वाले हवाई अड्डे के वाइस प्रेसिडेंट व प्रसिद्ध लेंडस्केप विशेषज्ञ प्रसन्न मूर्ति देसाई ने कहा है कि वृक्ष ऑक्सीजन के भंडार है। वे वातावरण से हजारों किलो कार्बन को हटाते है। ऐसे में भवनों, सड़क मार्गों व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर विकास योजनाओं में पेड़ों को काटने के बजाय उनका प्रत्यारोपण करना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि मूर्ति के नेतृत्व में बेंगलोर एयरपोर्ट पर 20 से 25 वर्ष आयु के  54 प्रकार की प्रजाति वाले 7912 वृक्षों सहित   एक लाख श्रब्स ( छोटे पौधे)  का प्रत्यारोपण किया गया है। उन्होंने  पांच महाद्वीपों से 2000 प्रजातियों को एकत्र कर , उनका  वातावरण अनुकूलन कर हवाई अड्डे के टर्मिनल में लगाया है ।  यंहा भारत के 26 एग्रो क्लाइमेटिक ज़ोन के 3600 स्थानीय  प्रजाति के पौधे भी लगे हैं। रामायण, महाभारत, गीता  सहित सिक्ख, जैन, इस्लाम , ईसाई  इत्यादि धर्मों में उल्लेखित विविध  प्रकार की वनस्पतियों तथा ग्रहों, नक्षत्रों के प्रतीक वृक्षों  का रोपण किया गया  है।

विद्या भवन पॉलिटेक्निक के जल केंद्र तथा पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के साझे में उदयपुर के लैंडस्केप आर्किटेक्ट व पर्यावरण विदों को प्रकृति अनुकूल विकास विषय पर संबोधित करने आये प्रसन्न मूर्ति ने  कहा कि रामायण एक वनस्पति शास्त्र भी है जिसमे  215 प्रकार की वनस्पतियों का उल्लेख है। राम का उल्टा “मरा” होता है जिसका एक  अर्थ वृक्ष होता है । महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में राम के जीवन वृत में 17 एग्रो क्लाइमेटिक ज़ोन का उल्लेख किया है।  अयोध्या, विश्वामित्र आश्रम, ,  नेपाल, भारद्वाज  आश्रम, चित्रकूट,  दंडकारण्य, पंचवटी , किष्किंधा, लंका के उल्लेख में वाल्मिकी ने सब हिमालयन तराई, एल्पाइन हिमालय जंगल, हिमालय क्षेत्र, ऊष्ण , सूखे, गीले, कटिबंधी पर्णपाती वनों, वर्षा वनों  तथा वंहा की जैव विविधता का वर्णन किया है।

प्रसन्ना मूर्ति ने कहा कि पेड़ इंसानों की  तरह  जीवित  और  संवेदनशील  होते है। वे हमसे संवाद करते है।  उनसे बातचीत कीजिये। वे हमारी भावनाओं, विचारों, व्यहवार व क्रियाओं का प्रत्युत्तर देते है। बड़े पेड़ों को काटना  पाप  कार्य होकर  प्रकृति के  प्रति अपराध  है।

प्रसन्नमूर्ति ने कहा कि  स्थानीय और प्रवासी पंछियों के लिए स्थान बनाये रखना हमारे जीवन के लिए जरूरी है। वे हानिकारक  कीटों  को नियंत्रित करते  हैं और मिट्टी को उर्वरक व स्वस्थ बनाते हैं।

उन्होंने कहा कि  भारतीय परम्पराएं व जीवन शैली पर्यावरण अनूकूल रही है।  इस जीवन शैली की ओर हमे लौटना ही होगा। मधुमक्खी सहित कई कीट परागण –  पोलीनेशन के  आधार हैं । कीटनाशक दवाइयों  व प्रदूषण से ये समाप्त हो रहे है। यदि ये खत्म हो जाएंगे तो खाद्यान्न उत्पादन रूक जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि वर्तमान गति से ही पर्यावरण प्रदूषण होता रहा तो वर्ष 2050 तक मानव प्रजाति नष्ट हो सकती है।

उन्होंने दुख जताया कि शोक को हरने वाले अशोक वृक्ष व इसके जैसे अनेक लाभदायक, चिकित्सकीय उपयोग वाले, जैव विविधता को  समृद्ध करने वाले पौधों, वृक्षों के स्थान पर गुल मोहर,  रेन ट्री, अफ्रीकन ट्यूलिप, कोनोकार्पस, तबेबुआ रोज़ा, नीलगिरी जैसे खतरनाक वृक्षों को लगा रहे हैं  जो पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक है। ये भूजल, स्थानीय जीवों व वनस्पति सहित मानव जीवन को बहुत नुकसान पंहुचाते हैं।

विद्याभवन पॉलिटेक्निक सभागार में लैंडस्केप आर्किटेक्ट समुदाय से बातचीत में उन्होंने कहा कि निर्माण कार्यों में मिट्टी व पेड़ों को बचा कर रखे। प्राकृतिक व  नैतिक  तरीकों को विकास कार्यों का मूल आधार बनाये ।   झीलों, तालाबों, नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध बनाएं। पहाड़ियों को कटने से रोके।इस अवसर पर आर्किटेक्ट सुनील लड्ढा, दिव्या शर्मा, शांतनु शर्मा,  एडवोकेट सुशील कोठारी, पर्यावरण प्रेमी कुशल रावल, सुधीर कुमावत, रघुवीर देवड़ा  ने उपरणा ओढ़ाकर प्रसन्नमूर्ति का स्वागत किया। संयोजन प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने किया।